कौन है देवी बिमला? जिन्हें भोग लगाए बिना भगवान जगन्नाथ नहीं करते प्रसाद स्वीकार, जानें इससे जुड़ी मान्यता

कौन है देवी बिमला? जिन्हें भोग लगाए बिना भगवान जगन्नाथ नहीं करते प्रसाद स्वीकार, जानें इससे जुड़ी मान्यता

Rath Yatra 2024: भारत में जीस तरह महादेव शिव के भारत ज्योतिर्लिंगों को महत्त्व दिया जाता है, ठीक वैसे ही देश में चारों दिशाओं में चार वैष्णव धाम भी है, जोकि भगवान विष्णु का घर माना जाता है। ये चारों विष्णु धाम चार पुरियो रे रूप में मशहूर है, जिनमें जगन्नाथ धाम का अलग ही महत्त्व है। फिलहाल जगन्नाथ पुरी में रथ यात्रा की सारी तैयारियां हो चुकी है। ऐसा कहा जाता है कि जगन्नाथ धाम बैकुंड है, जहां श्रीविष्णु, कृष्णा रूप में साक्षात विराजमान है। जगन्नाथ धाम की एक खास बात है। जहां भगवान जगन्नाथ को प्रसाद खिलाने से पहले उनकी बहन को ये प्रसाद ग्रहण करवाया जाता है।

बता दें कि देवी बिमला को तरह-तरह के 56 प्रकार के नैवेद्यों का भोग लगाया जाता है। इस भोग को महाप्रसाद कहते हैं, लेकिन एक रहस्य ये भी है कि खुद को समर्पित महाभोग भगवान जगन्नाथ खुद भी पहले नहीं खाते हैं। ये प्रसाद सबसे पहले बिमला देवी ग्रहण करती है। इसके बाद ही भगवान जगन्नाथ इसे खाते है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, देवी बिमला जगन्नाथ पुरी की अधिष्ठात्री देवी है। बिमला देवी को सती का आदिशक्ति स्वरूप माना जाता है और भगवान विष्णु उन्हें अपनी बहन मानते हैं। पुरी में जगन्नाथ मंदिर के प्रांगण में स्थित है और अति प्राचीन विमला देवी आदि शक्तिपीठ है।

ये है मान्यता

मान्यता यह है कि यहां मां सती की नाभि गिरी थी। इस शक्तिपीठ में मां सती को विमला और भगवान शिव को जगत कहा जाता है। देवी सती देवी शक्ति का अवतार है। इन्हें देवी दुर्गा भी कहा जाता है और देवी सती को देवी काली के रूप में भी पूजा जाता है।

पांच भागों में विभाजित है ये मंदिर

वहीं मंदिर के शिखर को ‘रेखा देउला’कहा जातै है, जिसकी ऊंचाई 60 फीट है। इसकी बाहरी दीवार पांच भागों में विभाजित है और मंदिर के चार प्रमुख हिस्से हैं। इनमें मंदीर का शिखर, सम्मेलन सभामंडप, पर्व-महोत्सव सभामंडप और भोग मंडप शामिल है। देवी बिमला को भोग लगने के बाद ही प्रसाद महाप्रसाद बन जाता है और भगवान जगन्नाथ समेत सभी भक्तों को बांटा जाता है।

Leave a comment